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महि॑ म॒हे दि॒वे अ॑र्चा पृथि॒व्यै कामो॑ म इ॒च्छञ्च॑रति प्रजा॒नन्। ययो॑र्ह॒ स्तोमे॑ वि॒दथे॑षु दे॒वाः स॑प॒र्यवो॑ मा॒दय॑न्ते॒ सचा॒योः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mahi mahe dive arcā pṛthivyai kāmo ma icchañ carati prajānan | yayor ha stome vidatheṣu devāḥ saparyavo mādayante sacāyoḥ ||

पद पाठ

महि॑। म॒हे। दि॒वे। अ॒र्च॒। पृ॒थि॒व्यै। कामः॑। मे॒। इ॒च्छन्। च॒र॒ति॒। प्र॒ऽजा॒नन्। ययोः॑। ह॒। स्तोमे॑। वि॒दथे॑षु। दे॒वाः। स॒प॒र्यवः॑। मा॒दय॑न्ते। सचा॑। आ॒योः॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:54» मन्त्र:2 | अष्टक:3» अध्याय:3» वर्ग:24» मन्त्र:2 | मण्डल:3» अनुवाक:5» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - जो युद्धविद्या को (प्रजानन्) जानता और विजय करता और राज्य की (इच्छन्) इच्छा करता हुआ (महे) बड़े (दिवे) प्रकाशमान के और (पृथिव्यै) भूमि के राज्य की प्राप्ति के लिये (चरति) चलता है उसको जो (मे) मेरी (महि) बड़ी (कामः) अभिलाषा है उसको शोभित करने की इच्छा करता हुआ विजय को प्राप्त होता है, उसका (अर्च) सत्कार करो और (ययोः) जिन विद्या और राज्य के (स्तोमे) प्रशंसा करने योग्य विजय और (विदथेषु) संग्रामों में (सपर्य्यवः) सेवक (देवाः) विद्वान् लोग (ह) निश्चय (आयोः) जीव के (सचा) सम्बन्ध से (मादयन्ते) प्रसन्न करते हैं, वे दोनों आप उन लोगों को आनन्द दीजिये ॥२॥
भावार्थभाषाः - जो विद्या और राज्य की वृद्धि की कामना करने और अधिक अवस्थावाले युद्धविद्या में निपुण जन, राजा और मन्त्रियों का लक्ष्मी और विजय से सत्कार करें, उन जनों को राजा और मन्त्री भी सदा ही सुखित करें ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

यो युद्धविद्यां प्रजानन् विजयन् राज्यमिच्छन्महे दिवे पृथिव्यै चरति तं यो मे महि कामोऽस्ति तमलङ्कर्त्तुमिच्छन् विजयते तमर्च। ययोः स्तोमे विदथेषु सपर्यवो देवा हाऽऽयोः सचा मादयन्ते तौ युवां तानानन्दयेतम् ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (महि) महान् (महे) महते (दिवे) प्रकाशमानाय (अर्च) सत्कुरु। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (पृथिव्यै) भूमिराज्यप्राप्तये (कामः) अभिलाषा (मे) मम (इच्छन्) (चरति) गच्छति (प्रजानन्) विदन् सन् (ययोः) विद्याराज्ययोः (ह) (स्तोमे) प्रशंसिते विजये (विदथेषु) सङ्ग्रामेषु (देवाः) विद्वांसः (सपर्यवः) सेवकाः (मादयन्ते) हर्षयन्ति (सचा) सम्बन्धेन (आयोः) जीवस्य ॥२॥
भावार्थभाषाः - ये विद्याराज्यवृद्धिकामा दीर्घायुषो युद्धविद्याकुशला राजामात्याञ्छ्रीविजयाभ्यां सत्कुर्य्युस्तान् राजाऽमात्या अपि सदैव सुखयन्तु ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्या व राज्याच्या वृद्धीची कामना करणाऱ्या, दीर्घायुषी, युद्धविद्येत कुशल लोकांनी विजय प्राप्त करवून देऊन राजा व मंत्री यांचा सत्कार करावा. राजा व मंत्री यांनीही त्या लोकांना सदैव सुखी ठेवावे. ॥ २ ॥